रजरप्पा मंदिर रामगढ - एक अनोखी रहस्य | माँ छिन्मस्तिके मंदिर रजरप्पा , झारखण्ड

 झारखण्ड राज्य के जिला रामगढ में रजरप्पा मंदिर स्थित है | इस मंदिर को लोग माँ छिन्मस्तिके मंदिर के भी नाम से जानते है | झारखण्ड राज्य के राजधानी रांची से लगभग 80 किलो मीटर तथा जिला बोकारो से 61 किलो मीटर  के दुरी में स्थित रजरप्पा मंदिर है जिसे लोग माँ छिन्मस्तिके मंदिर के नाम से भी जानते है | यह मंदिर दामोदर नदी तथा भेरवी नदी के संघम पे स्थित है | रामगढ जिला से रजरप्पा की दुरी लगभग 29 किलो मीटर होगा | रजरप्पा में सबसे ज्यादा परचलित यहाँ का झरना तथा यहाँ के मंदिर है | जिसे देखने के लिए हजारो लोग प्रतिदिन यहाँ आते है और अपना मन्नते मांगते है | 

rajrappa mandir , ramgarh


रजरप्पा को दो प्रान्तों में बाटा गया है - 

  1. रजरप्पा मंदिर 
  2. रजरप्पा परियोजना 
रजरप्पा मंदिर - रजरप्पा मंदिर यहाँ स्थित माँ छिन्मस्तिके मंदिर  के मंदिर के वजह से बहुत ही ज्यादा प्रचलित है | यहाँ पर आपको सिर्फ माँ छिन्मस्तिके का ही मंदिर नहीं मिलेगा | यहाँ पर आपको माँ छिन्मस्तिके मंदिर ,  काली मंदिर , दस महा विद्या मंदिर , संकर भगवान् मंदिर , हनुमान मंदिर ,सूर्य मंदिर, विराट रूप मंदिर इत्यादी भी स्थित है |

रजरप्पा परियोजना - रजरप्पा परियोजना यहाँ के कोल् फील्ड के कारण जाना जाता है | इस एरिया में कोयला बहुत ज्यादा मात्रा में स्तिथ है | रजरप्पा परियोजना में ccl स्तिथ है | जहा पर आपको कोयले की खाने भी बहुत ज्यादा मिलेगा | 


माँ छिन्मस्तिके मंदिर 

माँ छिन्मस्तिके मंदिर रामगढ जिले के रजरप्पा में स्तिथ दामोदर नदी तथा भेरवी भेडा नदी के संगम में स्तिथ है | पुरानो में रजरप्पा मंदिर का उल्लेख शक्तिपीठ के रूप में मिलता है | इसीलिए रजरप्पा मंदिर को दुनिया का दूसरा शक्तिपीठ मंदिर बोला जाता है | क्युकी यह मंदिर असम के कामख्या मंदिर के बाद दुनिया के दुसरे सबसे बड़े शक्तिपीठ मंदिर है | माँ छिन्मस्तिके माता का मंदिर पुरे झारखण्ड के साथ साथ झारखण्ड से सटे राज्यों में भी बहुत ज्यादा प्रचलित है | 
दामोदर तथा भेरवी नदी 



काली माता जी का मंदिर 

माँ छिन्मस्तिके मंदिर के अन्दर स्तिथ सिलाखंड में 3 आंखे आपको देखने को मिल जायेगा | माँ छिन्मस्तिके के बाये पैर आगे की ओर कलम फुल में है | पांव के नीचे विपरीत में रति मुद्रा में कामदेव और रति शयनावस्था में हैं। मां छिन्नमस्तिके के गले में सर्पमाला तथा मुंडमाल से सजाया गया है। बिखरे और खुले बाल, जिह्वा बाहर, सोने के आभूषणों से सुसज्जित मां नग्नावस्था में दिव्य रूप में स्तिथ हैं।
दाहिने हाथ में आपको तलवार देखने को मिल जायेगा तथा बाए हाथ में अपना कटा हुवा सिर देखने को मिल जायेगा | माता के अगल बगल डाकिनी और सकिनी कड़ी है जिन्हें माता रक्त पिला रही है तथा खुद को रक्त पी रही है | माता के गर्दन से तिन धराये खून बह रही है |


माँ छिन्मस्तिके मंदिर का निर्माण कब हुवा है ?

कई लोगो का कहना है की माँ छिन्मस्तिके मंदिर आज से लगभग 6 हज़ार साल पहले हुवा था कई लोगो का मानना है की यह मंदिर महाभारत काल से ही है | इसीलिए आज तक भी यह मंदिर का निर्माण कब हुवा कोई ठीक से नहीं बता सकता है |


माँ छिन्मस्तिके मंदिर का रहस्मय कहानिया ?

बोला जाता है की प्राचीन काल में रजरप्पा के आसपास रज नमक रजा हुवा करता था तथा रजा के पत्नी का नाम था रुपमा | लोग बोलते है की इन्ही दोनों के नाम के मिश्रण से इनका नाम रजरुपमा पड़ा | जो बाद में बदल रजरप्पा नाम रखा गया है और आज यह रजरप्पा के नाम से ही प्रचलित है | 


एक दुसरे कथा के अनुसार एक बार रजा रज पूर्णिमा के रात को सिकार के खोज में दामोदर नदी तथा भेरवी नदी के पास गए थे | जब रजा थक जाते है तो रात्रि में सोने के लिए उसी स्थान में सो जाते है | उस वक्त राजा रज को सपने में एक लाल वस्त्र धारण किये हुवे एक स्त्री दिखाए देती है | तब वह कन्या या स्त्री उस राजा रज से बोलते है -

हे राजन इस आयु में बिना संतान के आपका जीवन सुना लग रहा है | मेरी बात मनिगे तो आपकी रानी की गोद भर जाएगी | 

जब राजा का आँख खुलता है तो अपने आस पास देखने लगता है और उस स्त्री को खोजने लगता है अचनाताभी अचानक से वह स्त्री दामोदर नदी तथा भेरवी नदी से बहार निकलती है उन्हें देख कर राजा भयभीत हो जाते है | 

तभी उस जल से निकली स्त्री ने राजा से बोला , हे राजन में, मैं माँ छिन्मस्तिके हु | मुझे इस युग में कोई नहीं जनता है | मैं इस जंगले में प्राचीन काल से रह रही हु | आज में तुम्हे बरदान देती हु की आज से ठीक 9 महीने बाद तुम्हे पुत्र की प्राप्ति होगी | 

देवी फिर बोलती है - हे राजन जब तुम सुबह उठेंगे तो तुम्हे एक मंदिर दिखाए देगा | इस मंदिर के अन्दर सिलाखंड में आपको मेरी प्रतिमा दिखाई देगा | तुम मेरी पूजा कर बलि चढाओगे | यह बोलकर देवी माता गायब हो जाती है | 

और इस तरह से यह मंदिर रजरप्पा मंदिर के नाम से प्रचलित हो गया | 


बकरों की बलि क्यों दी जाती है ?      

जो भी व्यक्ति रजरप्पा मंदिर में जाते है तो वह अपने लिए कुछ देवी माता से कुछ मन्नते मांगते है | और जब मन्नते पूरी हो जाते है तो वो व्यक्ति रजरप्पा जाते है और बलि चढाते है | रजरप्पा मंदिर में लगभग रोज 200 - 300 बकरे की बलि चडाई जाती है | 


आशा करता हु दोस्तों आप सभी को याह लेख अच्छा लगा होगा | आप हमें कमेंट में अपना राय दे की यह लेख आपको कैसा लगा तथा आपको और किस पवित्र जगह के बारे में जानना है |




  

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