सोना पहाड़ी मंदिर बेको | सोना पहाड़ी मंदिर का रहस्य क्या है | जाने पूरी जानकारी

दोस्तों आज गिरिडीह झारखण्ड के सबसे चर्चित और फेमस धार्मिक स्थान सोना पहाड़ी के रहस्य के बारे में बात करने वाले है! इस लेख में हम जानेंगे की आखिर इस मंदिर का नाम सोना पहाड़ी क्यों पड़ा, कब से इस मंदिर में पूजा किया जाता है, इस मंदिर का खासियत क्या है , क्यों इतना चर्चित है ?

सोना पहाड़ी मंदिर

सोना पहाड़ी मंदिर का रहस्य क्या है

दोस्तों इस मंदिर में, मैं हमेशा जाता हु जब भी समय मिलता है  |इस मंदिर का रहस्य यह है की जो भी व्यक्ति इस मंदिर में जाकर कुछ भी मनोकामना करते है, द्वारसेनी माताजी और द्वारसेनी बाबा उसकी मनोकामना जरूर पूरी करते है | जब लोगो की मनोकामना पूरी हो जाती है तो यहाँ पर बकरो की बलि दी जाती है ! बकरो की बाली के बाद उस बकरे के मीट को वही बना के खाया जाता है ! अगर कोई वहा के मीट को या पूजा में बच्चे सामान को कोई घर लाने का कोशिश करते है उस लोगो के साथ जरूर कोई दुर्घटना हो जाती है!



ऐसा कहना है लोगो का, और मैंने भी अक्सर लोगो के मनोकामना को पूरा होते हुवे देखा है और बकरो की बली होते हुवे भी देखा है ! कई बार तो मैं वहा अपने दोस्तों के मनोकामना पूरी होने के करना सोना पहाड़ी जाना पड़ा और वहा बकरे के मीट को भी खाया! क्युकी वही मीट वहा के मंदिर का प्रसाद कहलाता है!

कब और क्यों पड़ा सोना पहाड़ी का नाम 

 हमारे पूर्वज श्री श्री दयाल चौधरी जिन्होंने सोना पहाड़ी बेको पर 1663 में द्वारसेनी बाबा व द्वारसेनी माता की पूजा शुरू की थी और मंदिर की स्थापना की थी। आज यहां सैकड़ों श्रद्धालु प्रतिदिन पूजा करने व मन्नतें मांगने आते हैं। यहां का दृश्य बहुत ही मनोरम व दर्शनीय है।

● सोना पहाड़ी बेको पर इस राजा का किला था जहां भारी मात्रा में सोना चांदी भी रखते थे इसीलिए इस पहाड़ी का नाम सोना पहाड़ी पड़ा।

● श्री श्री दयाल चौधरी लंगुटवार गोत्र के थे। आज भी इस गोत्र के लोग गिरिडीह और हजारीबाग क्षेत्र के विभिन्न गांवों में निवास करते हैं।

श्री दयाल चौधरी 

● सोना पहाड़ी मंदिर पर लंगुटवार गोत्र के लोग ही पुजारी होते हैं, हैं। जो कुर्मी महतो/ कुडमी जाती के हैं। 

● इन्होंने बेको,बकसपुरा और चौधरी बांध में कृषि कार्य हेतु विशाल बांध बनवाये थे। जो आज भी मौजूद हैं।

मृत्यु 

पालगंज के राजा के साथ युद्ध में अपने अन्य छ: भाईयों सहित इनकी मृत्यु हो गई थी और इनका बेको के सुंदरू टांड स्थित नदी में अंतिम संस्कार किया गया था, जहां इनकी पत्नी भी सती हो गई थी। इसीलिए इस नदी में उस स्थान को आज भी सती दह कहा जाता है। यहां इनके वंशजों का आज भी मृत्यु होने पर अंतिम संस्कार किया जाता है।

● कहा जाता है कि गोपालडीह में इनका गोहाल था। 

● गोपालडीह के मैदान पर (जहां वर्तमान में बेको उच्च विद्यालय गोपालडीह और मध्य विद्यालय गोपालडीह स्थित है) में, एक व्यक्ति को सूली पर चढ़ाया गया था उस मैदान को आज भी सुली टांड कहा जाता है।

   आशा करता हु दोस्तों यह लेख आप सभी को अच्छा लगा होगा! Comment में अपना राय जरूर दे और यदि कुछ आप लोगो के पास इस मंदिर के बारे और भी जानकारीया तो हमारे साथ निचे  comment में साझा जरूर करें ! 





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