vivekananda a spiritual leader | मन की सुद्धि गुरु भक्ति में ही है।

 

एक समय विवेकानंद को छात्र जीवन में बहुत  आर्थिक विषमताओं से जूझ रहे थे। विवेकानंद अपनी आर्थिक विषमताओं को दूर करने के लिए अपने गुरु रामकृष्णा परमहंस के पास जाकर बोलते हैं  की अगर हाफ काली माँ से प्रार्थना करेंगे तो मेरा वर्तमान स् थिति जो काफी संकट भरा हुआ है वो ठीक हो जाएगा। राम कृष्ण बोलते हैं विवेकानंद संकट तुम्हारे हैं तो तुम्हे ही मंदिर के अंदर जाकर काली माँ से मांगो वो तुम्हारी संकट जरूर दूर करेंगे।यह कह कर गुरूजी ने विवेकानंद को मंदिर के अंदर भेज दिया विवेकानंद मंदिर के अंदर जाते हैं और यह बोल के गुरु जी के निकट वापस आ जाते हैं कि माँ मुझे भक्ति दो।  गुरु जी पूछते हैं क्या मांगा? माँ मुझे भक्ति दो मांग के आया हूँ विवेकानंद ने कहा तो परमहंस जी बोलते है अरे इससे तेरे संकट दूर नहीं ।तुम फिर से अंदर जाकर साफ-साफ सब्दो में मांगो।विवेकानंद फिर से मंदिर के अंदर जाते हैं वहीं वापस मांग के आते हैं माता मुझे भक्ति तीसरी बार ही यही दोहराने पर माता मुझे भक्ति दो तब परमहंस जी बोलते हैं कि मुझे पता है तुम भौतिक सुख नहीं  मांगोगे क्योंकि  आध्यात्मिक ज्ञान पाने की पूर्ण जिज्ञासा तुम्हारे हृदय में उत्पन्न हो चुकी है इसलिए मैं तुम्हें तीनो बार भक्ति मांगने के लिए ही मंदिर के अंदर भेजा ।तेरे आर्थिक संकट था समाधान तो मैं स्वयं ही कर सकता था।

 

Vivekananda 

यहाँ यह एक उत्तम विधि बताई गई है सच्चे मार्गदर्शन बताया गया क्योंकि एक सच्चे ग्रुप के पास ही एक शिष्य का अंतर मन बना रहता  है और वे उनकी आत्म उन्नति का मार्ग स्वयं ही दिखाते रहते लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि हम इसके लिए आत्म जिज्ञासु बने रहे और विवेकपूर्ण सही गुरु की पहचान कर, उनके बताए मार्ग में चलकर हम अपने जीवन को  सफलता कि बुलंदियों पर पहुँच सकते हैं।

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